सोचिए कि आपने अपनी ब्रा के ऊपर अल्ट्रासाउंड करने वाला ऐसा उपकरण पहना हो जो चाय पीते समय भी आपकी ब्रेस्ट में ट्यूमर्स का पता लगा सकता हो.
तुर्की की वैज्ञानिक डॉक्टर जानान दादेविरेन ने मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नॉलजी (एमआईटी) की मीडिया लैब में अपनी टीम के साथ मिलकर ऐसा ही तकनीक विकसित की है.
यह उपकरण उन्होंने अपनी आंटी के सम्मान में तैयार किया है जिनकी ब्रेस्ट कैंसर से मौत हो गई थी.
जिन महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर होने का ख़तरा ज़्यादा होने के कारण बार-बार मैमोग्राम करवाने की सलाह दी गई हो, उनके लिए यह उपकरण मददगार हो सकता है. ऐसी महिलाएं इस डिवाइस के माध्यम से दो मैमोग्राम के बीच भी ब्रेस्ट कैंसर की मॉनीटरिंग कर सकती हैं.
कैंसर के मामलों में सबसे ज़्यादा मरीज़ ब्रेस्ट कैंसर के होते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़, साल 2020 में 23 लाख महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर का पता चला और 6 लाख 85 हज़ार की इस बीमारी से जान चली गई.
ब्रेस्ट कैंसर महिलाओं की मौत के लिए ज़िम्मेदार दूसरा सबसे बड़ा कारण है.
अमेरिकन कैंसर सोसायटी का कहना है कि अगर शुरू में ही ब्रेस्ट कैंसर का पता चल जाए और यह एक ही जगह पर केंद्रित हो तो पांच साल तक जीवित रहने की दर 99 फ़ीसदी है.
डॉक्टर दादेविरेन कहती हैं कि उनके उपकरण की मदद से जीवित रहने की दर बढ़ाने में मदद मिल सकती है क्योंकि जिन महिलाओं में देर से इस बीमारी का पता चलता है, उनके जीवित रहने की दर सिर्फ़ 22 प्रतिशत है.
कैसे काम करता है डिवाइस
एमआईटी में मैटीरियल साइंटिस्ट और इंजिनियर जानान दादेविरेन को इस उपकरण को बनाने का ख़्याल तब आया जब वह अस्पताल में अपनी आंटी के बगल में बैठी थीं.
उनकी आंटी ने रूटीन जांच करवाती थीं, फिर भी एक दिन पता चला कि वह एक तेज़ी से बढ़ने वाले ब्रेस्ट कैंसर की चपेट में हैं. इसके छह महीने बाद ही उनकी जान चली गई.
इसमें मधुमक्खी के छत्ते के आकार जैसे छह ऐसे खांचे हैं जिनमें एक छोटा सा अल्ट्रासाउंड कैमरा जोड़ा जा सकता है.
इस कैमरे को अलग-अलग खांचों में रखने पर हर तरफ़ से ब्रेस्ट की जांच की जा सकती है. इसके इस्तेमाल के लिए अल्ट्रासाउंड जेल इस्तेमाल करने की भी ज़रूरत नहीं है.
डॉक्टर दादेविरेन कहती हैं कि यह 0.3 सेंटीमीटर की छोटी गांठों का भी पता लगा सकता है. शुरू में बनने वाली गांठों का आकार इतना ही होता है.
वह कहती हैं, “इसका मतलब है कि किसी तरह की असामान्यता का पता लगाने में यह बहुत सटीक है.”
मैमोग्राम क्या होता है
मैमोग्राम ब्रेस्ट कैंसर का पता लगाने के लिए सबसे आम तरीका है. इसमें ब्रेस्ट का एक्स-रे करके गांठों का पता लगाया जाता है.
रेडियोग्राफ़र एक-एक करके ब्रेस्ट को मशीन पर लगी दो समतल प्लेटों के बीच रखता है.
ये प्लेटें कुछ पलों के लिए ब्रेस्ट को प्रेस करती हैं. इससे महिलाओं को हल्का सा दबाव महसूस होता है और वे असहज भी महसूस कर सकती हैं.
कुछ महिलाओं को यह प्रक्रिया दर्दनाक लग सकती है लेकिन इसकी प्रक्रिया बहुत जल्द पूरी हो जाती है.
हालांकि, मैमोग्राम करवाना महंगा भी है और कई देशों में इसका खर्च सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था के तहत नहीं उठाया जाता.
कुछ महिलाओं को दर्द क्यों होता है?
हेलेन यूल कंसल्टेंट रेडियोग्राफ़र हैं और ब्रिटेन में रेडियोग्राफ़र्स की सलाहकार संस्था की प्रमुख भी हैं. वह बताती हैं, “हर किसी की ब्रेस्ट अलग होती हैं और उनमें ग्लैंड (ग्रंथियों) और वसा की मात्रा भी अलग-अलग होती है.”
जिन महिलाओं में ग्रंथियों वाले टिशू ज़्यादा होते हैं, मैमोग्राम के दौरान उन्हें वसा वाली ब्रेस्ट की तुलना में ज़्यादा असुविधा हो सकता है.
साथ ही, हारमोन रिप्लेसमेंट थेरेपी (एचआरटी) के कारण भी ब्रेस्ट संवेदनशील हो सकती हैं.
यूल कहती हैं कि इस बात का भी बड़ा फ़र्क़ पड़ता है कि मैमोग्राम करवाने के अनुभव को लेकर महिलाएं क्या सोचती हैं.
मैमोग्राम के दौरान होने वाली असुविधा से बचने के कुछ आसान से तरीके हैं. जैसे कि पीरियड आने को एक हफ़्ता बचा हो तो मैमोग्राम करवाने से बचा जा सकता है. या फिर मैमोग्राम से पहले पैरासिटामोल खाई जा सकती है.
किनके लिए है यह डिवाइस
शोध बताते हैं कि एक मैमोग्राम के बाद दूसरा मैमोग्राम करवाने के बीच की अवधि में भी ब्रेस्ट कैंसर विकसित हो सकता है. इसे इंटरवल कैंसर कहा जाता है. ब्रेस्ट कैंसर के कुल मामलों में इस तरह के कैंसर 20 से 30 फ़ीसदी है.
एमआईटी की टीम का कहना है कि इस दौरान होने वाले ट्यूमर रूटीन चेकअप के दौरान पाए जाने वाली गांठों की तुलना में ज्यादा ख़तरनाक होते हैं.
ऐसे में, इस उपकरण को शुरू में उन महिलाओं को दिया जा सकता है जिन्हें ब्रेस्ट कैंसर होने का ज़्यादा खतरा हो.
इससे उन्हें दो मैमोग्राम या सेल्फ़ एग्ज़ामिनेशन के बीच बनने वाली गांठों का पता लगाने में मदद मिल सकती है.
लेकिन शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर इस उपकरण से किसी तरह की असामान्यता का पता चलता है, तब भी मैमोग्राम करवाना ज़रूरी होगा.
कहां तैयार किया गया
पहने जाने वाले स्वास्थ्य उपकरणों पर काम करने वाली एमआईटी की टीम को इस उपकरण को बनाने में साढ़े छह साल लगे.
इसी साल अगस्त में इसे अमेरिका में पेटेंट मिला और अभी इंसानों पर इसका परीक्षण किया जा रहा है.
एक उपकरण की क़ीमत 1000 डॉलर (क़रीब 83 हज़ार रुपये) होगी लेकिन आविष्कारकों का कहना है कि बड़े पैमाने पर उत्पादन होने पर क़ीमत कम हो जाएगी. ऐसा होने में चार से पांच साल लग सकते हैं.
शोध करने वाली टीम का अनुमान है कि ‘अगर आप हर रोज़ इसकी मदद से स्कैन करेंगे तो इसकी क़ीमत एक कप कॉफ़ी से भी कम आएगी.’
उम्मीद की किरण
शोध बताते हैं कि विकासशील देशों में ब्रेस्ट कैंसर से होने वाली मौतों की दर ज़्यादा होने का कारण है- कैंसर का देरी से पकड़ में आना और अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं न होना.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, ज़्यादा आय वाले देशों में पांच साल तक जीवित रहने की दर 90 फ़ीसदी से ज़्यादा है जबकि भारत में यह 66 प्रतिशत और दक्षिण अफ़्रीका में सिर्फ़ 40 फ़ीसदी है.
इस उपकरण को शरीर के अन्य हिस्सों को स्कैन करने में भी इस्तेमाल किया जा सकता है. डॉक्टर दादेविरेन जब पिछले साल गर्भवती थीं, तब उन्होंने इसे अपने शिशु को स्कैन करने के लिए इस्तेमाल किया था.
वह कहती हैं, “मेरी आंटी बहुत कम उम्र की थीं. सिर्फ़ 49 साल की. उन्होंने कभी सोचा भी नहीं होगा कि इस तरह से उनकी जान चली जाएगी. क्या होता अगर उन्होंने भी ऐसी ब्रा पहनी होती?”